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अखिल भारतीय बढ़ई महासभा: सामाजिक न्याय और राजनीतिक हिस्सेदारी की लड़ाई

भूमिका:


22 फरवरी 2014 को लखनऊ के गन्ना संस्थान के सभागार में अखिल भारतीय बढ़ई महासभा की स्थापना की गई। देश के बुद्धिजीवियों के समक्ष आयोजित इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में विश्राम शर्मा को सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। यह संगठन बढ़ई जाति की राजनीतिक हिस्सेदारी, सामाजिक भेदभाव, शिक्षा का अभाव, पुश्तैनी कारोबारों का पतन, और मजदूरी जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने के उद्देश्य से गठित किया गया।

महासभा का उद्देश्य और कार्य:
अखिल भारतीय बढ़ई महासभा का मुख्य उद्देश्य समाज के अधिकारों की रक्षा करना और इसे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाना है। इसके लिए महासभा ने अनेक महत्वपूर्ण पहलें की हैं, जैसे:

  1. सम्मेलन और शोभायात्राएं: भगवान विश्वकर्मा की शोभायात्राओं के आयोजन के माध्यम से समाज की एकता और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया गया।
  2. धरना-प्रदर्शन और सामूहिक विवाह: सामाजिक समस्याओं पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने और समाज में एकजुटता लाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए।
  3. छात्र-छात्राओं का सम्मान: शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों को सम्मानित कर शिक्षा के महत्व पर जोर दिया।
  4. जन चेतना संदेश रथ यात्रा: समाज के मुद्दों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए यह अभियान सफलतापूर्वक चलाया गया।
  5. संगठन का विस्तार: महासभा ने उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में अपनी सक्रियता बढ़ाई।

बढ़ई समाज की राजनीतिक अनदेखी:
महासभा के प्रयासों के बावजूद, बढ़ई समाज की राजनीतिक उपेक्षा आज भी गंभीर चिंता का विषय है। सामाजिक न्याय समिति की 2001 की रिपोर्ट के अनुसार, समाज की आबादी लगभग 4% है, लेकिन इसे राजनीतिक प्रतिनिधित्व से वंचित रखा गया है।

किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने बढ़ई समाज को विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा, या विधान परिषद में उचित स्थान नहीं दिया।

राजनीतिक पार्टियां अपने संगठनों में भी इस समाज के नेताओं को शामिल करने से बचती हैं।

परिणामस्वरूप, समाज के मुद्दे उन जगहों पर नहीं उठाए जाते, जहां कानून और नीतियां बनाई जाती हैं।

महासभा का राजनीतिक संघर्ष:
विश्राम शर्मा के नेतृत्व में महासभा ने सत्ता में हिस्सेदारी की मांग को लेकर लगातार आवाज उठाई है।

महासभा का मानना है कि जब तक बढ़ई समाज को राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, तब तक उनकी समस्याओं का समाधान संभव नहीं है।

उन्होंने प्रमुख राजनीतिक दलों पर समाज के लिए टिकट देने और शासन-सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाया।

समानता और विकास की दिशा में चुनौतियां:
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में समानता की बातें तो बहुत की जाती हैं, लेकिन सामाजिक और जातिगत असमानता इसका बड़ा अवरोध है।

कुछ जातियां शासन, शिक्षा और रोजगार में प्रमुख स्थानों पर काबिज हैं, जबकि श्रमिक जातियां जैसे बढ़ई समाज, इन अधिकारों से वंचित हैं।

जब तक समाज के सभी वर्गों को समान अवसर नहीं मिलेगा, तब तक यह देश सही मायनों में विकसित नहीं हो सकता।

निष्कर्ष:
अखिल भारतीय बढ़ई महासभा केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो सामाजिक न्याय और राजनीतिक हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ रहा है। विश्राम शर्मा के नेतृत्व में यह महासभा बढ़ई समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह समय है कि राजनीतिक दल समाज के इस वर्ग की समस्याओं को समझें और उन्हें सत्ता में उचित स्थान देकर समानता और विकास की नींव मजबूत करें।

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